Thursday, May 29, 2014

मंगल पर इतिहास रचने चला मंगलयान

मंगल पर इतिहास रचने चला मंगलयान


            इंसान के मंगलकारी भविष्य के लिए हिंदुस्तान का मंगलयान25 करोड़ किलोमीटर लांघने जा रहा है। मंगल या मार्स का नाम ग्रीक युद्ध के देवता के नाम पर इस ग्रह का नाम पड़ा है। मंगल को पृथ्वी का सबसे करीबी भाई भी कहा जाता है। मंगल ग्रह लाल या गाढ़ा भूरा दिखता है और रहस्य और रोमांच से भरपूर है। इस मंगल ग्रह के करीब पहुंचेगा भारत का पहला मंगलयान। अंतरिक्ष के बेहद मुश्किल, पेचीदा और खतरनाक सफर पर करीब 25 करोड़ से 40 करोड़ किलोमीटर तक का सफर तय कर मंगलयानमंगल को करीब से देखेगा और उसे सूंघने की कोशिश करेगा साथ ही उसके वातावरण का स्वाद लेगा।
मंगलयानमंगल पर जीवन तलाशेगा, जीवन के अवशेष ढूंढेगा और इस बीहड़ काम को अंजाम देगा छोटा भीम। टाटा नैनो के आकार और 1350 किलोग्राम वजनी इस मंगलयान को कुछ वैज्ञानिक छोटा भीमके नाम से बुलाते हैं। ये मंगलयानमंगल के चक्कर काटेगा। मंगलयानइसरो के भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल यानि पीएसएलवी से उड़ान भरते हुए अपने मिशन पर निकल चुका है। पीएसएलवी रॉकेट अब तक अलग अलग उपगृहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में पारंगत हो चुका है, ये उसकी 25वीं उड़ान है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर में खड़ा 15 मंजिला इमारत जितना 44.4 मीटर ऊंचा, करीब 50 हाथियों के वजन जितना भारी, 320 टन वजनी, पीएसएलवी बेहद टिकाऊ और परखा हुआ रॉकेट रहा है। 5 नवंबर- 2013- दिन के ठीक 2 बजकर 38 मिनट पर ये रॉकेट उपना उड़ान भरते हुए लाल ग्रह पर अनेक सम्भानाएं तलासने के लिए निकल पड़ा। करीब 44 मिनट की उड़ान के दौरान बारी-बारी से इस रॉकेट के चारों चरण अलग होते गये। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने प्रक्षेपण के बाद कहा कि पीएलएलवी सी 25 यान ने मार्स आर्बिटर को विधिपूर्वक पृथ्वी की दीर्घवृताकार कक्षा में प्रवेश कराया। अभियान के नियंत्रण कक्ष से उन्होंने कहा कि यह ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का 25वां प्रक्षेपण है और यह नये एवं जटिल अभियान प्रारूप के तहत किया गया है ताकि हम मार्स आर्बिटर यान को पृथ्वी की कक्षा से मंगल की कक्षा में न्यूनतम ऊर्जा में भेज सकें। धरती पर मंगलयानपर नजर रखने और उससे बातें करने, निर्देश देने के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर पर एक अंतरिक्ष ट्रैकिंग स्टेशन है। इसके अलावा बैंगलूरु के पास बायलालू में इसरो का विशेष स्टेशन है, जहां 32 फीट बड़ी भीमकाय डिश है। प्रशांत महासागर में शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के दो जहाज एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना समुद्र से पूरी उड़ान पर नजर रखे हुए हैं।
मंगलयान की खासियस
मंगलयान के लिए अंतरिक्ष में 25 करोड़ किलोमीटर का सफर आसान नहीं है। इस दौरान मंगलयान को सौर विकिरण का खतरा होगा। इसे बेहद कम और बेहद ज्यादा तापमान से गुजरते हुए अपने उपकरणों को बचाना होगा। इतना ही नहीं डीप स्पेस में जरा सी चूक अंतकाल तक के लिए किसी भी यान को भटका सकती है। इससे बचने के लिए भारत के काबिल वैज्ञानिकों ने कई इंतजाम किए हैं।
1- पूरे मंगलयान को सुनहरे रंग के कवर से लपेटा गया है। ये कवर खास कंबल का काम करेगा जो उसे गर्मी और सर्दी दोनों से बचाएगा।
2- डीप स्पेस में आते ही सौर विकिरण और सूरज की अल्ट्रा-वायलट किरणों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। ये सुनहरा कवर उससे भी बचाएगा।
3- सितारों के बीच मंगलयानअपनी दिशा से भटक न जाए, इसके लिए इसमें एक नहीं दो-दो स्टार सेंसर लगाए गए हैं। इससे पहले चंद्रमा की ओर गए चंद्रयान में स्टार सेंसर में ही खराबी आ गई थी। इसरो ने उस गलती से सबक लिया है।
4- पृथ्वी से संपर्क साधने के लिए, धरती से आने वाले कमजोर सिग्नल पकड़ने के लिए मंगलयानमें बड़ी डिश लगाई गई है।
24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा तक पहुंचेगा मंगलयान
मंगलयान में अपना 800 किलोग्राम ईंधन है। 25 करोड़ किलोमीटर के लंबे सफर के दौरान ईंधन बचाना और मंगल के करीब पहुंचने पर करीब 9 महीने से सोए पड़े उसके मुख्य इंजन को दोबारा चलाना इसरो के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए मंगलयान में 2 विशेष कंप्यूटर लगाए गए हैं। ये कंप्यूटर दिक्कत होने पर खुद ब खुद फैसला लेने औऱ मंगलयान का रास्ता दुरुस्त करने में सक्षम है। पृथ्वी की कक्षा से निकलकर करीब 9 महीने का सफर तय करने के बाद मंगलयान24 सितंबर 2014 को मंगल गृह की कक्षा तक पहुंच जाएगा। उसके रॉकेट फायर कर उसे मंगल की उस अंडाकार कक्षा की ओर लाया जाएगा। जहां मंगल की धरती से उसका कम से कम फासला रहेगा 365 किलोमीटर और अधिक से अधिक फासला रहेगा 80,000 किलोमीटर। और फिर वो अगले 6 महीने तक इस अबूझे गृह के रहस्य सुलझाने की कोशिश करेगा। इसमें भारत में ही बनाए गए पांच विशेष उपकरण हैं - ये सभी उपकरण सोलर पैनल से बनी बिजली से चलेंगे।
सतह पर  उतरे बिना कैसे जीवन की होगी तलाश
मंगलयान पर लगा है मीथेन सेंसर- पहली बार कोई मार्स मिशनऐसा उपकरण लेकर जा रहा है जो मंगल के वातावरण और सतह में मीथेन की मौजूदगी का पता लगा लेगा। मीथेन यानि जीवन की निशानी। ये उपकरण भारतीय वैज्ञानिकों ने खास तौर पर बनाया है। इसके अलावा मंगलयान पर 360 डिग्री की तस्वीरें खींचने वाले विशेष कैमरे लगे हैं। मंगलयान का थर्मल सेंसर भी लगे हैं जो मंगल गृह के ठंडे हिस्सों और बेहद गर्म हिस्सों की पहचान करेंगे ताकि ये जाना जा सके कि आखिर इस गृह में मौसम इतनी तेजी से कैसे बदलता है। मंगलयान  मंगल की तस्वीरें वातावरण से जुड़े आंकड़े भेजेगा और भारतीय वैज्ञानिक ये उम्मीद करेंगे कि चंद्रयान ने जिस तरह चंद्रमा पर पानी खोज निकाला वैसे ही शायद मंगलयान  मंगल गृह से जुड़ी कोई बड़ा राज खोल दे। शायद मीथेन ही खोज ले, जिसे जीवन का पहला संकेत माना जा सकता है। लेकिन मंगलयान से पृथ्वी में बैठे भारतीय वैज्ञानिकों को संपर्क साधना आसान न होगा। मंगल की कक्षा में पहुंचने यानि 25 करोड़ किलोमीटर दूर जाने के बाद मंगलयान तक धरती से संदेश पहुंचने में 20 मिनट लगेंगे, मंगलयान को उसका जवाब देने में 20 मिनट अलग से, यानि मंगलयान का हाल 40 मिनट बाद मिल सकेगा।

मंगल अभियान में अभियान आयी तकनीकी खराबी दूर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यानको कक्षा में आगे बढ़ाने के लिए चलाए गए चौथे अभियान के लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त करने में नाकाम हो गया। पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने की तीन सफल प्रक्रियाओं के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यान अभियान में 10 नवम्बर की रात उस समय बाधा उत्पन्न हो गई थी जब यान चौथी प्रक्रिया के दौरान एक लाख किलोमीटर के दूरस्थ बिंदू के लक्ष्य को हासिल करने में असफल रहा। इस प्रक्रिया के तहत 71, 623 किलोमीटर से एक लाख किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन यह 35 मीटर प्रति सेकेंड की वेग से सिर्फ 78, 276 किलोमीटर की दूरी तय कर सका जबकि इसे 130 मीटर प्रति सेकेंड की वेग से आगे बढ़ाने की योजना थी।  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा में और ऊपर उठाने के काम के चौथे चरण में 12 नवम्बर (मंगलवार) तड़के 05 बजकर 03 मिनट 50 सेकेंड पर बेंगलूरू के पीन्या स्थित संगठन के अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र (एससीसी) से कमांड देकर मंगलयान की कक्षा बदलने का काम किया गया। यान की पृथ्वी से अधिकतम दूरी अब 71 हजार 623 किलोमीटर से बढ़कर एक लाख 18 हजार 642 किलोमीटर हो गई है।  इसरो के मुताबिक मंगलयान के कक्षा उन्नयन का चौथा चरण 11 नवम्बर को ही पूरा किया जाना था। लेकिन सुबह जब मंगलयान को ऊपर उठाने के लिए इंजन चालू किया गया तो कुछ तकनीकी खराबी के कारण इसे 78 हजार 276 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही उठाया जा सका, जबकि लक्ष्य एक लाख किलोमीटर के करीब का था। इसरो ने तब कहा था कि मंगलयान पूरी तरह ठीक है और चौथे चरण का पूरक उन्नयन तड़के निश्चित किया गया था। 12 नवम्बर को लगभग 304 सेकेंड के आपरेशन में यान को 118642 किलोमीटर की ऊंचाई तक उठाया गया। मंगलयान की कक्षा का आगामी दिनों में और उन्नयन करते हुए धीरे-धीरे यान को उस कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां से 30 नवंबर की मध्य रात्रि के बाद यान को मंगलयात्रा पर रवाना किया जाएगा। इसरो ने बताया कि एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत जब प्राथमिक एवं अतिरिक्त क्वाइलको एक साथ उर्जा दी गई तब तरल ईंजन को उर्जा का प्रवाह रूक गया। उम्मीद के मुताबिक अभियान एटीट्यूड कंट्रोल थ्रस्टर्स के उपयोग से जारी रहा। यान सामान्यहै और 100 फीसदी सुरक्षित है। इन पांचों प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद अभियान के लिए 1 दिसंबर का दिन काफी महत्वपूर्ण होगा जब परा-मंगल अंत:प्रक्षेपण रात करीब 12 बजकर 42 मिनट पर होगा। इसरो के पीएसएलवी सी-25 ने 1350 किलोग्राम के मंगलयान (मार्स आर्बिटर) को 5 नवम्बर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दोपहर दो बजकर 38 मिनट पर प्रक्षेपण के 44 मिनट बाद पृथ्वी की कक्षा में भेज दिया था। इसके साथ ही 450 करोड़ रूपये के इस अभियान का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो गया था।

गरीब भारत का अंतरिक्ष अभियान
अंतरिक्ष अभियान को लेकर भारत सरकार के रूख़ में आए इस बदलाव पर कुछ लोग सवाल भी उठाने लगे हैं, उनका कहना है कि इतने बड़ी पूंजी से भारत की अर्थ व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है, भारत जैसे गरीब देश को अंतरिक्ष अभियान जैसे कार्यक्रम में पैसा नहीं बहाना चाहिए। वहीं विदेशी जानकारों का मानना है कि "इस छह करोड़ पाउंड से भारत में गरीबी की ज़िंदगी बिता रहे 40 करोड़ लोगों को गरीबी से उबार नहीं सकते हैं।" यूनीवर्सिटी कॉलेज लंदन के मुलर्ड अंतरिक्ष विज्ञान प्रयोगशाला में 'सौर मंडल के प्रमुख' एंड्रयू कोट्स के मुताबिक अंतरिक्ष में खोज की ओर झुकाव इससे जुड़े आर्थिक लाभ के अनुमानों के चलते है। खोज कार्यक्रमों के लक्ष्य काफी ऊंचे हैं। अगर वो दुनिया के सामने एक बार यह साबित कर सके कि उनमें दूसरे ग्रहों तक अंतरिक्ष यान भेजने की क्षमता है तो वो वैज्ञानिक संगठनों को अपने प्रक्षेपण यान पर उपलब्ध स्थान बेच सकते हैं। प्रोफेसर कोट्स बताते हैं कि इस अभियान के साथ ही भारत उन देशों की बिरादरी में शामिल हो जाएगा जिन्हें अंतरिक्ष में खोज की महारत हासिल है। भारत ने चीन और जापान को पीछे छोड़ते हुए बड़े देशों की कटेगरी में शामिल हो गया है।


चांद से मंगल तक की कहानी............

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 60 के दशक में शुरू हुआ था। शुरुआती दौर में ज्‍यादा संसाधन हमारे पास नहीं थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इतिहास रचने वाले हमारे उपग्रह और रॉकेटों को अंतरिक्ष में भेजने से पहले साइकिल और बैलगाड़ी पर लादकर लाया गया था। लेकिन हाल में मंगल पर अपना अंतरिक्ष्‍ा यान (मंगलयान) भेजकर भारत के वैज्ञानिकों ने अपने सफल अंतरिक्ष अभियान की एक मिसाल पेश की है।
इसरो
अंतरिक्ष में भारत का पहला कदम रखने का श्रेय प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को जाता है, जिन्होंने 1960 के दशक में तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा में छोटे रॉकेटों की मदद से अंतरिक्ष की गतिविधियां शुरू की। 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा गया। 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए इनकोस्पार का गठन किया गया। वर्ष 1969 में 15 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन किया गया।
भारत का पहला रॉकेट
थुंबा में 1962 में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्‍चिंग स्टेशन की स्थापना हुई। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी यहां काम करने वाले सबसे पहले रॉकेट इंजीनियरों के दल में शामिल थे। यहां से नाइके-अपाचे नाम का पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लॉन्च किया गया, जिसे अमरीका से लिया गया था। भारत में बना पहला रॉकेट रोहिणी-75 था, जिसे 20 नवंबर 1967 को लॉन्च किया गया।
आर्यभट्ट से क्रांति
आर्यभट्ट भारत का पहला उपग्रह था। इसका नाम प्राचीन भारत के खगोलविद् आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने पहला स्वदेशी उपग्रह आर्यभट्ट रूस की मदद से 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में भेजा। यह उपग्रह अंतरिक्ष में उपग्रह संचालन में अनुभव प्राप्त करने के लिए बनाया गया था।
भास्कर वन
भास्कर-1 भारत का पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था। 7 जून 1979 को इसे अंतरिक्ष में भेजा गया। इस उपग्रह का कैमरा जो तस्वीरें भेजता था, उन्हें जंगलों, पानी और महासागरों के अध्ययन में इस्तेमाल किया जाता था।
रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड (आरटीपी)
रोहिणी प्रौद्योगिकी पोलोड उपग्रह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 10 अगस्त 1979 को लांच किया गया, लेकिन यह अपनी कक्षा में स्‍थापित नहीं हो पाया। रोहिणी सीरीज का ही एक उपग्रह आरएस-1, 18 जुलाई 1980 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भेजा गया, जो सफल रहा। इसी सीरीज का एक अन्य उपग्रह रोहिणी आरएसडी-1 अंतरिक्ष में 31 मई 1981 को स्‍थापित किया गया।
एप्पल से जगी उम्मीद
19 जून 1981 को एप्‍पल उपग्रह लांच किया गया। एप्पल का पूरा नाम एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। एप्पल ने लगभग दो वर्षों तक काम किया। यह एक बेलनाकार उपग्रह था और इसका वजन 350 किलोग्राम था। एप्पल उपग्रह से टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रेषण और रेडियो नेटवर्किंग जैसे संचार परीक्षण किए गए। एप्पल ने संचार क्षेत्र में कई नयी राहें भारत के लिए खोल दीं।
इनसेट से बढ़ा संचार का दायरा
इनसेट सीरीज के उपग्रहों ने भारत की संचार सेवाओं को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभायी। 10 अप्रैल, 1982 को इनसेट-1ए का प्रक्षेपण किया गया। अगले वर्ष 1983 में भारत के सूचना तकनीक विकास में अहम पड़ाव आए और एसएलवी-3 और आरएस-डी2 का प्रक्षेपण किया गया। इनसेट-1बी के प्रक्षेपण के साथ इनसेट तकनीक को हरी झंडी मिल गई और 1984 तक इनसेट से दूरसंचार, टेलीविजन जैसी सुविधाएं जुड़ गईं। दूरसंचार के क्षेत्र में यह मील का पत्‍थर साबित हुआ।
चांद पर भारत के कदम
इसरो और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के तहत 1984 में भारत के कदम पहली बार चांद पर पड़े। राकेश शर्मा ने सेवियत संघ के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आठ दिन बिताए। सोयूज टी11 में राकेश शर्मा को लांच किया गया था। अंतरिक्ष केन्द्र में उन्होंने उत्तरी भारत की फोटोग्राफी की और गुरुत्वाकर्षण-हीन योगाभ्यास किया। उस वक्‍त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष्‍ा से भारत कैसा दिखता है...? जवाब में शर्मा ने कहा-सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।
चंद्रयान-1
चंद्रयान का भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में अहम स्थान है। भारत का प्रथम चंद्रयान, श्रीहरिकोटा से 22 अक्तूबर, 2008 को सफलतापूर्वक लांच किया गया। चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह से जुड़े तथ्यों, पानी के अंश और हीलियम के बारे में जानकारियां जुटाना था। चंद्रयान ने ही चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की थी। चंद्रयान के साथ भारत चांद पर यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस सफल प्रयोग से चांद और मंगल पर यान भेजने की दिशा में भारत के लिए नई राहें खुल गईं थी।
मंगल की मंगलयात्रा
मंगल ग्रह के रहस्य सुलझाने के लिए भारत ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया। मंगल पर जीवन और ग्रह से जुड़ी अनसुलझी पहेलियों के जवाब ढूढ़ने के लिए भारत के मंगलयान मार्स ऑर्बिटर की यात्रा 5 नवम्बर 2013 को श्रीहरिकोटा से शुरू हुई। करीब 44 मिनट बाद मंगलयान पृथ्वी में अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच गया। मंगलयान की यात्रा के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया इतिहास रच दिया। 25 दिन तक पृथ्वी के आसपास चक्कर लगाने के बाद वैज्ञानिक मंगलयान को मंगल ग्रह की ओर बूस्टर रॉकेट के सहारे भेजेंगे। मार्स ऑर्बिटर का सफल अभियान भारत को लाल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाएगा। चांद पर कदम रखने से लेकर मंगल का सफर तय करने तक भारतीय वैज्ञानिकों ने कई प्रयोग किए हैं, जिसकी वजह से आज हम नई तकनीकों का उपयोग कर पा रहे हैं।
                                               विशाल धर दुबे----

Tuesday, July 16, 2013

आज मंगलवार है महावीर का वार है

आज मंगलवार है महावीर का वार है
सच्चे मन से ध्यान लगाओ, होगा बेड़ा पार है ।। टेर ।।

चेत सुदी पूनम को जनमे, शनिवार को जाए हो,
भक्त तेरी शरणागत आए, अंजनी लाड़ लड़ाये हो,


शंकर का अवतार है, महिमा अपरम्पार है ।। सच्चे...।।

मेघनाद ने शक्ति चलाई, रामा दल में आई हो,


लक्ष्मणजी के लगी कलेजे, दुःख पाये रघुराई हो,
दुःख का पारावार है, मच गई हाहाकार है ।। सच्चे...।।

सेना में संभारा छाया, महावीर वहॉं आये हो,
रामचंद्रजी की आज्ञा से ही, द्रोणाचल को लाये हो,
लक्ष्मणजी को घुटी पिलाई, सोया सिंह जगाये हो,
मिलना बारंबार है, हनुमत बल आधार है ।। सच्चे...।।

भजन मंडल तेरा भजन बनाकर, भरी सभा में गाए हो,
दास तुम्हारा तुमको सुमिरे, चरणों में शीश नवाये हो,
ध्यावे सब संसार है, हनुमत बड़ो अवतार है ।। सच्चे...।।

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता


कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता


शहरयार

Monday, May 16, 2011

1894 कानून की आड़ में खूनी संघर्ष

आखिर कौन है जिम्मेदार...?

विशाल धर दुबे

उत्तर प्रदेश मे अलगअलग स्थानों पर कई बार खूनी होली खेली गयी है। हर बार प्रशासन व किसान आमने-सामने रहा है, इस खूनी संघर्ष की वजह क्या है शायद किसी के पास इसका जवाब नहीं हैं, जितने लोग हैं सबका
अपना अपना तर्क है, कोई प्रशासन को दोषी ठहराता है तो कोई शासन को कोई 1894 के कानून को आखिर कौन है जिम्मेदार
…..? किसानों और प्रशासन के बीच छिड़े महासंग्राम में खून तो दोनों पक्ष का बहता है सवाल ये है कि खूनी संग्राम रुकने का नाम क्यों नहीं ले रहा है जितनी बार खूनी संघर्ष हुआ हर बार भूमिअधिग्रहण कानून 1894 को ही जिम्मेदार बताया जाता है। इस कानून में संशोधन तो केन्द्र में बैठी सरकार ही कर सकती है। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि भूमि अधिग्रहण कानून तो पूरे देश में लागू लेकिन सबसे अधिक हिंसा उत्तर प्रदेश में ही क्यों हो रही है ? यहां के किसान ही सबसे अधिक पीड़ित क्यों हैं। वजह साफ है, यूपी में किसानों की बेसकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव में अधिग्रहण कर मुनाफाखोरी के लिए बिल्डरों को हाथ बेच दिया जा रहा है और किसानों के आपत्ति को भी नहीं सुना जा रहा है। सवाल ये है कि क्या 1894 के कानून में क्या ये भी लिखा है कि महिलाओं और बच्चों पर जुल्म किया जाय, आगजनी किया जाय और फिर भी किसान अपनी जमीन का मुआवजा मांगें तो उनपर मुकदमा लगकर उन्हें बेघर कर दिया जाये, ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब शायद किसी के पास हो। किसी ने कहा है कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादिगरीयसी, किसानों की बेसकीमती जमीन उनके लिए सवर्ग के समान है लेकिन उनसे जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है। अगर यहां पर काम करने वाले लाल फीताशाही वर्ग जरा हटकर किसानों के तरफ खड़े होकर देखें तो उन्हें भी सबकुछ सामने दिख जायेगा कि किसनों की मांग गलत नहीं हैं। 1894 के कानून के आड़ में सत्ता पर काबिज सफेदपोश ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए कई बार किसानों का खून बहाया है। कई बार नौकरशाह को मजबूर होना पड़ता है कारवाई करने के लिए। आखिर ऐसे हालात से कैसे निपटा जाये ? टप्पल, मथुरा और घोड़ी बछेड़ा कांड को किसान भूल भी नहीं पाये थे कि 7 मई को भट्टा पारसौल गांव में किसानों के खून से जमीन एक बार फिर लाल हो गयी। इस हादसे का दोसी कौन था क्या लाल फीताशाही या 1894 का कानून या भ्रष्टतंत्र..? इस पूरे हादसे में हमारा सिस्टम कहीं न कहीं दोसी है। किसानों पर लाठियां बरसी और किसान गोलियां भी खाई, सवाल ये है कि कोई हो या न हो लेकिन मिशन 2012 को लेकर कई राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रोटियां जरुर सेंक रही हैं। अब किसानों के जमीन पर कई राजनीतिक पार्टियां और राजनेता अपनी जमीन तलाश रहे हैं। देखना ये होगा कि किस राजनेता के हिस्से में कितनी जमीन हाथ लगती है। 1894 के कानून में परिवर्तन करना तो केन्द्र के हाथ में है लेकिन राज्य सरकार को इसके लिए दबाव बनाना चाहिए। लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं कर रही है वो जानती है कि अगर कानून में बदलाव होगा तो उसकी तिजोरी कैसे भरेगी और प्राधिकरण में दलाली कैसे होगी। बड़े-बड़े बिल्डरों से मोटी रकम कैसे उगाही की जायेगी। ग्रेटर नोएडा के किसनों का जो हालात आज हुआ है उसके लिए नीचे से लेकर ऊपर तक बैठे भ्रष्टतंत्र है। प्रशासन लगातार पूरे मामले में असामाजिक तत्व को ही दोसी ठहराता रहा है लेकिन सच तो ये है असामाजिक तत्व के साथ भ्रष्ट अधिकारी भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। इलाहाबाद हईकोर्ट ने ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण के कुछ हिस्से पर रोक लगाकर बिल्डरों और प्राधिकरण के लिए मुशीबत जरुर खड़ी कर दी है, क्योंकि हजारों लोग जो लाखों रुपया लगाकर आशियाना देख रहे थे उनके लिए मुशीबत जरुर खड़ी हो गयी है।

Monday, May 9, 2011


आखिर कहां थे… ?

लोकपाल विधेयक और अन्ना हजारे

विशाल धर दुबे--

देश में आजादी के बाद भरत विकास की ओर उन्मुख जरुर हुआ लेकिन उसी के साथ देश में भ्रष्टाचार पौधा भी पनपता रहा। किसी ने भी नहीं सोचा था भ्रष्टाचार की जड़ इतनी मजबूत हो जायेगी कि देश के हर एक तंत्र में नासूर बन जायेगा। आज भारत भ्रष्टाचार की श्रेणी में अग्रणी है क्योंकि भारत का काला धन स्विस बैंक में सबसे अधिक है। यही वजह है कि देश का बच्चा-बच्चा यही चाहता है कि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार जल्द से जल्द समाप्त हो जिसका मिशाल दिल्ली के जन्तर मन्तर पर देखने को मिला। भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव के बाद धूमकेतु की तरह अचानक बाबूराव (अन्ना) हजारे अवतरित हुए तो पूरा हिन्दुस्तान अन्ना के समर्थन में उमड़ पड़ा। अन्ना के आन्दोलन ने केन्द्र सरकार की सांसे रोक दी क्योंकि उनके समर्थन में पूरा हिन्दुस्तान सड़क पर उतर पड़ा। "जन लोकपाल विधेयक" की मांग को लेकर अनना हजारे पांच दिन तक जन्तर-मंतर पर पर अड़े रहे, आखिर कार सरकार अन्ना हजारे की सभी सर्तों को मानते हुए उनका अनसन तोड़वाया गया और गांधीवादी अन्ना हजारे की जीत हुई।

कौन हैं अन्ना ?

अन्ना का जन्म 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रालेगाँव सिद्धी नाम के गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ था। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण अन्ना पढ़ नहीं पाए। 1963 में भारत-चीन युद्ध के दौरान वह भारतीय सेना में एक ड्राइवर के रूप में शामिल हुए। कहते हैं की 1965 में खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारतीय सैनिकों के शहीद होते देख वे बड़े व्यथित हुए, इसी दौरान उन्होंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी व आचार्य विनोबा भावे के बारे में अध्ययन किया और बेहद प्रभावित हुए। 1975 में वह सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपने गाँव लौट आये और वहां ग्रामीणों को नहर और बाँध बनाकर पानी का संग्रह करने की प्रेरणा दी। उन्होंने साक्षरता कार्यक्रम भी चलाये, जिनसे वह देश भर में मशहूर हुए। उन्होंने पहला आन्दोलन महाराष्ट्र के वन विभाग के खिलाफ किया व सफल रहे। पूर्व में वह 10 बार आमरण अनशन कर चुके हैं। 1991 में अन्ना हजारे ने "भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन" का गठन किया, 97 में सूचना का अधिकार माँगते हुए आन्दोलन चलाया, जिस पर पहले महाराष्ट्र और फिर 2005 में केंद्र सरकार को "सूचना का अधिकार" लाना पड़ा।

42 सालों से लोकपाल विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाया।

लोकपाल का इतिहास: स्कैंडीनेवियाई देशों में स्थापित किए गए ओम्बुड्समैन की तर्ज पर भारतीय लोकपाल की परिकल्पना की गई। स्वीडन में ओम्बुड्समैन की स्थापना 1809 में ही की जा चुकी थी। इसके तुरंत बाद कई देशों में अधिकारी वर्ग के रवैये से लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए इस तरह की संस्था का सूत्रपात किया गया। 'ओम्बुड्समैन' एक स्वीडिश शब्द है जिसका मतलब 'विधायिका द्वारा नियुक्त एक ऐसा अधिकारी जो प्रशासकीय और न्यायिक प्रक्रियाओं से संबंधित शिकायतों का निपटारा करे।'

60 के दशक की शुरुआत में देश के प्रशासनिक ढांचे में जड़ जमाते भ्रष्टाचार से यहां पर स्कैंडीनेवियाई देशों के जैसे ओम्बुड्समैन की जरूरत महसूस की गई। मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पांच जनवरी 1966 को प्रशासकीय सुधार आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने अपनी सिफारिशों में एक द्वि-स्तरीय प्रणाली के गठन की वकालत की। इस द्वि-स्तरीय प्रणाली के तहत केंद्र में एक लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की स्थापना पर जोर दिया गया था। सरकार ने पहला लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 1968 में पेश किया। सरकारें आती गईं और जाती गईं, लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के चलते पिछले 42 सालों से लोकपाल विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाया।

1968 में पहली बार इस विधेयक को चौथी लोकसभा में पेश किया गया। इस सदन से यह विधेयक 1969 में पारित भी हो गया लेकिन राज्यसभा में अटका रहा। इसी बीच लोकसभा के भंग हो जाने के चलते यह विधेयक पहली बार में ही समाप्त हो गया। इस विधेयक को एक बार नए सिरे से 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 और हाल ही में 2008 में संसद में पेश किया गया, लेकिन हर बार इसे किसी न किसी वजह के चलते फंसना पड़ा। हर बार पेश करने के बाद इस विधेयक में सुधार के लिए या तो किसी संयुक्त संसदीय समिति या गृह मंत्रालय की विभागीय स्थायी समिति के पास भेजा गया। और जब तक इस विधेयक पर सरकार कोई अंतिम निर्णय ले पाती सदन ही भंग हो गया।

प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों पर कार्रवाई की ताकत देने वाला लोकपाल विधेयक कई बार सरकार द्वारा सदन में पेश किया गया। लेकिन हर बार विधेयक के औंधे मुंह गिरने की वजह दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा हमारे राजनेताओं के मंसूबों की भी पोल खोलती है। संक्षिप्त समय वाली इंद्रकुमार गुजराल की सरकार ने भी इस विधेयक को पेश करने का साहस दिखाया। 1996 में पेश किया गया यह विधेयक पांचवीं बार गिरा। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में और 2001 में इसे पारित कराने का असफल प्रयास किया। सितंबर 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भरोसा दिलाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार इस विधेयक को अमल में लाने के लिए समय नष्ट न करते हुए शीघ्र लाएगी। यह बात और है कि बहुदलीय सरकार की व्यवस्था में पारदर्शिता से परहेज के दबाव ने अभी तक इस विधेयक का मार्ग प्रशस्त नहीं किया है।

जन लोकपाल विधेयक के मुख्य बिन्दु

-इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।

-यह संस्था चुनाव आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी।

-किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।

-भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

-भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।

-अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।

-लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

-लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।

-सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।

-लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।

जन लोकपाल बिल की प्रमुख शर्तें

न्यायाधीश संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था। बिल के मसौदा पर एक नजर....

1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।

2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी

3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।

5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा: यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।

6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।

8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल/लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।

9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा ? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (एंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में मुख्य अंतर

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगसेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी।