Thursday, May 29, 2014

मंगल पर इतिहास रचने चला मंगलयान

मंगल पर इतिहास रचने चला मंगलयान


            इंसान के मंगलकारी भविष्य के लिए हिंदुस्तान का मंगलयान25 करोड़ किलोमीटर लांघने जा रहा है। मंगल या मार्स का नाम ग्रीक युद्ध के देवता के नाम पर इस ग्रह का नाम पड़ा है। मंगल को पृथ्वी का सबसे करीबी भाई भी कहा जाता है। मंगल ग्रह लाल या गाढ़ा भूरा दिखता है और रहस्य और रोमांच से भरपूर है। इस मंगल ग्रह के करीब पहुंचेगा भारत का पहला मंगलयान। अंतरिक्ष के बेहद मुश्किल, पेचीदा और खतरनाक सफर पर करीब 25 करोड़ से 40 करोड़ किलोमीटर तक का सफर तय कर मंगलयानमंगल को करीब से देखेगा और उसे सूंघने की कोशिश करेगा साथ ही उसके वातावरण का स्वाद लेगा।
मंगलयानमंगल पर जीवन तलाशेगा, जीवन के अवशेष ढूंढेगा और इस बीहड़ काम को अंजाम देगा छोटा भीम। टाटा नैनो के आकार और 1350 किलोग्राम वजनी इस मंगलयान को कुछ वैज्ञानिक छोटा भीमके नाम से बुलाते हैं। ये मंगलयानमंगल के चक्कर काटेगा। मंगलयानइसरो के भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल यानि पीएसएलवी से उड़ान भरते हुए अपने मिशन पर निकल चुका है। पीएसएलवी रॉकेट अब तक अलग अलग उपगृहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में पारंगत हो चुका है, ये उसकी 25वीं उड़ान है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर में खड़ा 15 मंजिला इमारत जितना 44.4 मीटर ऊंचा, करीब 50 हाथियों के वजन जितना भारी, 320 टन वजनी, पीएसएलवी बेहद टिकाऊ और परखा हुआ रॉकेट रहा है। 5 नवंबर- 2013- दिन के ठीक 2 बजकर 38 मिनट पर ये रॉकेट उपना उड़ान भरते हुए लाल ग्रह पर अनेक सम्भानाएं तलासने के लिए निकल पड़ा। करीब 44 मिनट की उड़ान के दौरान बारी-बारी से इस रॉकेट के चारों चरण अलग होते गये। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने प्रक्षेपण के बाद कहा कि पीएलएलवी सी 25 यान ने मार्स आर्बिटर को विधिपूर्वक पृथ्वी की दीर्घवृताकार कक्षा में प्रवेश कराया। अभियान के नियंत्रण कक्ष से उन्होंने कहा कि यह ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का 25वां प्रक्षेपण है और यह नये एवं जटिल अभियान प्रारूप के तहत किया गया है ताकि हम मार्स आर्बिटर यान को पृथ्वी की कक्षा से मंगल की कक्षा में न्यूनतम ऊर्जा में भेज सकें। धरती पर मंगलयानपर नजर रखने और उससे बातें करने, निर्देश देने के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर पर एक अंतरिक्ष ट्रैकिंग स्टेशन है। इसके अलावा बैंगलूरु के पास बायलालू में इसरो का विशेष स्टेशन है, जहां 32 फीट बड़ी भीमकाय डिश है। प्रशांत महासागर में शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के दो जहाज एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना समुद्र से पूरी उड़ान पर नजर रखे हुए हैं।
मंगलयान की खासियस
मंगलयान के लिए अंतरिक्ष में 25 करोड़ किलोमीटर का सफर आसान नहीं है। इस दौरान मंगलयान को सौर विकिरण का खतरा होगा। इसे बेहद कम और बेहद ज्यादा तापमान से गुजरते हुए अपने उपकरणों को बचाना होगा। इतना ही नहीं डीप स्पेस में जरा सी चूक अंतकाल तक के लिए किसी भी यान को भटका सकती है। इससे बचने के लिए भारत के काबिल वैज्ञानिकों ने कई इंतजाम किए हैं।
1- पूरे मंगलयान को सुनहरे रंग के कवर से लपेटा गया है। ये कवर खास कंबल का काम करेगा जो उसे गर्मी और सर्दी दोनों से बचाएगा।
2- डीप स्पेस में आते ही सौर विकिरण और सूरज की अल्ट्रा-वायलट किरणों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। ये सुनहरा कवर उससे भी बचाएगा।
3- सितारों के बीच मंगलयानअपनी दिशा से भटक न जाए, इसके लिए इसमें एक नहीं दो-दो स्टार सेंसर लगाए गए हैं। इससे पहले चंद्रमा की ओर गए चंद्रयान में स्टार सेंसर में ही खराबी आ गई थी। इसरो ने उस गलती से सबक लिया है।
4- पृथ्वी से संपर्क साधने के लिए, धरती से आने वाले कमजोर सिग्नल पकड़ने के लिए मंगलयानमें बड़ी डिश लगाई गई है।
24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा तक पहुंचेगा मंगलयान
मंगलयान में अपना 800 किलोग्राम ईंधन है। 25 करोड़ किलोमीटर के लंबे सफर के दौरान ईंधन बचाना और मंगल के करीब पहुंचने पर करीब 9 महीने से सोए पड़े उसके मुख्य इंजन को दोबारा चलाना इसरो के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए मंगलयान में 2 विशेष कंप्यूटर लगाए गए हैं। ये कंप्यूटर दिक्कत होने पर खुद ब खुद फैसला लेने औऱ मंगलयान का रास्ता दुरुस्त करने में सक्षम है। पृथ्वी की कक्षा से निकलकर करीब 9 महीने का सफर तय करने के बाद मंगलयान24 सितंबर 2014 को मंगल गृह की कक्षा तक पहुंच जाएगा। उसके रॉकेट फायर कर उसे मंगल की उस अंडाकार कक्षा की ओर लाया जाएगा। जहां मंगल की धरती से उसका कम से कम फासला रहेगा 365 किलोमीटर और अधिक से अधिक फासला रहेगा 80,000 किलोमीटर। और फिर वो अगले 6 महीने तक इस अबूझे गृह के रहस्य सुलझाने की कोशिश करेगा। इसमें भारत में ही बनाए गए पांच विशेष उपकरण हैं - ये सभी उपकरण सोलर पैनल से बनी बिजली से चलेंगे।
सतह पर  उतरे बिना कैसे जीवन की होगी तलाश
मंगलयान पर लगा है मीथेन सेंसर- पहली बार कोई मार्स मिशनऐसा उपकरण लेकर जा रहा है जो मंगल के वातावरण और सतह में मीथेन की मौजूदगी का पता लगा लेगा। मीथेन यानि जीवन की निशानी। ये उपकरण भारतीय वैज्ञानिकों ने खास तौर पर बनाया है। इसके अलावा मंगलयान पर 360 डिग्री की तस्वीरें खींचने वाले विशेष कैमरे लगे हैं। मंगलयान का थर्मल सेंसर भी लगे हैं जो मंगल गृह के ठंडे हिस्सों और बेहद गर्म हिस्सों की पहचान करेंगे ताकि ये जाना जा सके कि आखिर इस गृह में मौसम इतनी तेजी से कैसे बदलता है। मंगलयान  मंगल की तस्वीरें वातावरण से जुड़े आंकड़े भेजेगा और भारतीय वैज्ञानिक ये उम्मीद करेंगे कि चंद्रयान ने जिस तरह चंद्रमा पर पानी खोज निकाला वैसे ही शायद मंगलयान  मंगल गृह से जुड़ी कोई बड़ा राज खोल दे। शायद मीथेन ही खोज ले, जिसे जीवन का पहला संकेत माना जा सकता है। लेकिन मंगलयान से पृथ्वी में बैठे भारतीय वैज्ञानिकों को संपर्क साधना आसान न होगा। मंगल की कक्षा में पहुंचने यानि 25 करोड़ किलोमीटर दूर जाने के बाद मंगलयान तक धरती से संदेश पहुंचने में 20 मिनट लगेंगे, मंगलयान को उसका जवाब देने में 20 मिनट अलग से, यानि मंगलयान का हाल 40 मिनट बाद मिल सकेगा।

मंगल अभियान में अभियान आयी तकनीकी खराबी दूर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यानको कक्षा में आगे बढ़ाने के लिए चलाए गए चौथे अभियान के लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त करने में नाकाम हो गया। पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने की तीन सफल प्रक्रियाओं के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यान अभियान में 10 नवम्बर की रात उस समय बाधा उत्पन्न हो गई थी जब यान चौथी प्रक्रिया के दौरान एक लाख किलोमीटर के दूरस्थ बिंदू के लक्ष्य को हासिल करने में असफल रहा। इस प्रक्रिया के तहत 71, 623 किलोमीटर से एक लाख किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन यह 35 मीटर प्रति सेकेंड की वेग से सिर्फ 78, 276 किलोमीटर की दूरी तय कर सका जबकि इसे 130 मीटर प्रति सेकेंड की वेग से आगे बढ़ाने की योजना थी।  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा में और ऊपर उठाने के काम के चौथे चरण में 12 नवम्बर (मंगलवार) तड़के 05 बजकर 03 मिनट 50 सेकेंड पर बेंगलूरू के पीन्या स्थित संगठन के अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र (एससीसी) से कमांड देकर मंगलयान की कक्षा बदलने का काम किया गया। यान की पृथ्वी से अधिकतम दूरी अब 71 हजार 623 किलोमीटर से बढ़कर एक लाख 18 हजार 642 किलोमीटर हो गई है।  इसरो के मुताबिक मंगलयान के कक्षा उन्नयन का चौथा चरण 11 नवम्बर को ही पूरा किया जाना था। लेकिन सुबह जब मंगलयान को ऊपर उठाने के लिए इंजन चालू किया गया तो कुछ तकनीकी खराबी के कारण इसे 78 हजार 276 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही उठाया जा सका, जबकि लक्ष्य एक लाख किलोमीटर के करीब का था। इसरो ने तब कहा था कि मंगलयान पूरी तरह ठीक है और चौथे चरण का पूरक उन्नयन तड़के निश्चित किया गया था। 12 नवम्बर को लगभग 304 सेकेंड के आपरेशन में यान को 118642 किलोमीटर की ऊंचाई तक उठाया गया। मंगलयान की कक्षा का आगामी दिनों में और उन्नयन करते हुए धीरे-धीरे यान को उस कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां से 30 नवंबर की मध्य रात्रि के बाद यान को मंगलयात्रा पर रवाना किया जाएगा। इसरो ने बताया कि एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत जब प्राथमिक एवं अतिरिक्त क्वाइलको एक साथ उर्जा दी गई तब तरल ईंजन को उर्जा का प्रवाह रूक गया। उम्मीद के मुताबिक अभियान एटीट्यूड कंट्रोल थ्रस्टर्स के उपयोग से जारी रहा। यान सामान्यहै और 100 फीसदी सुरक्षित है। इन पांचों प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद अभियान के लिए 1 दिसंबर का दिन काफी महत्वपूर्ण होगा जब परा-मंगल अंत:प्रक्षेपण रात करीब 12 बजकर 42 मिनट पर होगा। इसरो के पीएसएलवी सी-25 ने 1350 किलोग्राम के मंगलयान (मार्स आर्बिटर) को 5 नवम्बर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दोपहर दो बजकर 38 मिनट पर प्रक्षेपण के 44 मिनट बाद पृथ्वी की कक्षा में भेज दिया था। इसके साथ ही 450 करोड़ रूपये के इस अभियान का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो गया था।

गरीब भारत का अंतरिक्ष अभियान
अंतरिक्ष अभियान को लेकर भारत सरकार के रूख़ में आए इस बदलाव पर कुछ लोग सवाल भी उठाने लगे हैं, उनका कहना है कि इतने बड़ी पूंजी से भारत की अर्थ व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है, भारत जैसे गरीब देश को अंतरिक्ष अभियान जैसे कार्यक्रम में पैसा नहीं बहाना चाहिए। वहीं विदेशी जानकारों का मानना है कि "इस छह करोड़ पाउंड से भारत में गरीबी की ज़िंदगी बिता रहे 40 करोड़ लोगों को गरीबी से उबार नहीं सकते हैं।" यूनीवर्सिटी कॉलेज लंदन के मुलर्ड अंतरिक्ष विज्ञान प्रयोगशाला में 'सौर मंडल के प्रमुख' एंड्रयू कोट्स के मुताबिक अंतरिक्ष में खोज की ओर झुकाव इससे जुड़े आर्थिक लाभ के अनुमानों के चलते है। खोज कार्यक्रमों के लक्ष्य काफी ऊंचे हैं। अगर वो दुनिया के सामने एक बार यह साबित कर सके कि उनमें दूसरे ग्रहों तक अंतरिक्ष यान भेजने की क्षमता है तो वो वैज्ञानिक संगठनों को अपने प्रक्षेपण यान पर उपलब्ध स्थान बेच सकते हैं। प्रोफेसर कोट्स बताते हैं कि इस अभियान के साथ ही भारत उन देशों की बिरादरी में शामिल हो जाएगा जिन्हें अंतरिक्ष में खोज की महारत हासिल है। भारत ने चीन और जापान को पीछे छोड़ते हुए बड़े देशों की कटेगरी में शामिल हो गया है।


चांद से मंगल तक की कहानी............

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 60 के दशक में शुरू हुआ था। शुरुआती दौर में ज्‍यादा संसाधन हमारे पास नहीं थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इतिहास रचने वाले हमारे उपग्रह और रॉकेटों को अंतरिक्ष में भेजने से पहले साइकिल और बैलगाड़ी पर लादकर लाया गया था। लेकिन हाल में मंगल पर अपना अंतरिक्ष्‍ा यान (मंगलयान) भेजकर भारत के वैज्ञानिकों ने अपने सफल अंतरिक्ष अभियान की एक मिसाल पेश की है।
इसरो
अंतरिक्ष में भारत का पहला कदम रखने का श्रेय प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को जाता है, जिन्होंने 1960 के दशक में तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा में छोटे रॉकेटों की मदद से अंतरिक्ष की गतिविधियां शुरू की। 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा गया। 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए इनकोस्पार का गठन किया गया। वर्ष 1969 में 15 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन किया गया।
भारत का पहला रॉकेट
थुंबा में 1962 में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्‍चिंग स्टेशन की स्थापना हुई। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी यहां काम करने वाले सबसे पहले रॉकेट इंजीनियरों के दल में शामिल थे। यहां से नाइके-अपाचे नाम का पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लॉन्च किया गया, जिसे अमरीका से लिया गया था। भारत में बना पहला रॉकेट रोहिणी-75 था, जिसे 20 नवंबर 1967 को लॉन्च किया गया।
आर्यभट्ट से क्रांति
आर्यभट्ट भारत का पहला उपग्रह था। इसका नाम प्राचीन भारत के खगोलविद् आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने पहला स्वदेशी उपग्रह आर्यभट्ट रूस की मदद से 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में भेजा। यह उपग्रह अंतरिक्ष में उपग्रह संचालन में अनुभव प्राप्त करने के लिए बनाया गया था।
भास्कर वन
भास्कर-1 भारत का पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था। 7 जून 1979 को इसे अंतरिक्ष में भेजा गया। इस उपग्रह का कैमरा जो तस्वीरें भेजता था, उन्हें जंगलों, पानी और महासागरों के अध्ययन में इस्तेमाल किया जाता था।
रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड (आरटीपी)
रोहिणी प्रौद्योगिकी पोलोड उपग्रह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 10 अगस्त 1979 को लांच किया गया, लेकिन यह अपनी कक्षा में स्‍थापित नहीं हो पाया। रोहिणी सीरीज का ही एक उपग्रह आरएस-1, 18 जुलाई 1980 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भेजा गया, जो सफल रहा। इसी सीरीज का एक अन्य उपग्रह रोहिणी आरएसडी-1 अंतरिक्ष में 31 मई 1981 को स्‍थापित किया गया।
एप्पल से जगी उम्मीद
19 जून 1981 को एप्‍पल उपग्रह लांच किया गया। एप्पल का पूरा नाम एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। एप्पल ने लगभग दो वर्षों तक काम किया। यह एक बेलनाकार उपग्रह था और इसका वजन 350 किलोग्राम था। एप्पल उपग्रह से टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रेषण और रेडियो नेटवर्किंग जैसे संचार परीक्षण किए गए। एप्पल ने संचार क्षेत्र में कई नयी राहें भारत के लिए खोल दीं।
इनसेट से बढ़ा संचार का दायरा
इनसेट सीरीज के उपग्रहों ने भारत की संचार सेवाओं को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभायी। 10 अप्रैल, 1982 को इनसेट-1ए का प्रक्षेपण किया गया। अगले वर्ष 1983 में भारत के सूचना तकनीक विकास में अहम पड़ाव आए और एसएलवी-3 और आरएस-डी2 का प्रक्षेपण किया गया। इनसेट-1बी के प्रक्षेपण के साथ इनसेट तकनीक को हरी झंडी मिल गई और 1984 तक इनसेट से दूरसंचार, टेलीविजन जैसी सुविधाएं जुड़ गईं। दूरसंचार के क्षेत्र में यह मील का पत्‍थर साबित हुआ।
चांद पर भारत के कदम
इसरो और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के तहत 1984 में भारत के कदम पहली बार चांद पर पड़े। राकेश शर्मा ने सेवियत संघ के अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आठ दिन बिताए। सोयूज टी11 में राकेश शर्मा को लांच किया गया था। अंतरिक्ष केन्द्र में उन्होंने उत्तरी भारत की फोटोग्राफी की और गुरुत्वाकर्षण-हीन योगाभ्यास किया। उस वक्‍त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष्‍ा से भारत कैसा दिखता है...? जवाब में शर्मा ने कहा-सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।
चंद्रयान-1
चंद्रयान का भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में अहम स्थान है। भारत का प्रथम चंद्रयान, श्रीहरिकोटा से 22 अक्तूबर, 2008 को सफलतापूर्वक लांच किया गया। चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह से जुड़े तथ्यों, पानी के अंश और हीलियम के बारे में जानकारियां जुटाना था। चंद्रयान ने ही चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की थी। चंद्रयान के साथ भारत चांद पर यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस सफल प्रयोग से चांद और मंगल पर यान भेजने की दिशा में भारत के लिए नई राहें खुल गईं थी।
मंगल की मंगलयात्रा
मंगल ग्रह के रहस्य सुलझाने के लिए भारत ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया। मंगल पर जीवन और ग्रह से जुड़ी अनसुलझी पहेलियों के जवाब ढूढ़ने के लिए भारत के मंगलयान मार्स ऑर्बिटर की यात्रा 5 नवम्बर 2013 को श्रीहरिकोटा से शुरू हुई। करीब 44 मिनट बाद मंगलयान पृथ्वी में अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच गया। मंगलयान की यात्रा के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया इतिहास रच दिया। 25 दिन तक पृथ्वी के आसपास चक्कर लगाने के बाद वैज्ञानिक मंगलयान को मंगल ग्रह की ओर बूस्टर रॉकेट के सहारे भेजेंगे। मार्स ऑर्बिटर का सफल अभियान भारत को लाल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाएगा। चांद पर कदम रखने से लेकर मंगल का सफर तय करने तक भारतीय वैज्ञानिकों ने कई प्रयोग किए हैं, जिसकी वजह से आज हम नई तकनीकों का उपयोग कर पा रहे हैं।
                                               विशाल धर दुबे----