आधी आबादी का कड़वा सच......

क्या शिक्षा बदल सकती है महिलाओं की स्थिति...?
विशाल धर दुबे
किसी ने कहा है कि एक व्यक्ति शिक्षित होता है तो एक परिवार का कल्याण होता और जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो दो परिवार फलता फूलता है, और जब  परिवार की सभी महिलाएं शिक्षित होती हैं तो समाज तरक्की करता है और जब हमारा समाज तरक्की करता है तो देश तरक्की करता है। सवाल ये है कि क्या शिक्षा बदल सकती है महिलाओँ की स्थिति। लेकिन गौर करने वाली बात है कि आधुनिक जीवनशैली से वशीभूत होकर हम हमेशा पुरुष प्रधान भारतीय समाज  महिलाओं के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार करने वाले एक रुढ़िवादी समाज की संज्ञा देते हैं। हालांकि यह कथन पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि आजादी के पश्चात जब सभी मनुष्यों को समान राजनैतिक अधिकार जरुर मिला लेकिन आज उनकी स्थिति उसी तरह से है जैसे अग्रेजों के जमाने में थी, क्योंकि समाज और परिवार में लोगों का महिलाओं के प्रति नजरिया में बदलाव नहीं हो पाया है, जो भी बदलाव हुआ है उसके पीछ पश्चिमी सभ्यता जरुर हावी हुई है। आज की महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन वहीं जब परिवार और समाज की बात करें तो इनकी स्थिति एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है, जिनका उपयोग अपनी इच्छा और स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है। जहां एक ओर महिलाएं इस डर से अकेले घर से बाहर जाने के कतराती हैं कि कहीं वह किसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति की कुदृष्टि का शिकार ना हो जाएं, वहीं घर के भीतर भी उसे हम सुरक्षित नहीं कह सकते, हज़ारों ऐसे मामले हमारे सामने हैं जो पति द्वारा पत्नी के बलात्कार या उसके शारीरिक शोषण जैसी कड़वी सच्चाई बयां करते हैं। इन हालातों और संकुचित मानसिकता से त्रस्त होकर आज महिलाएं पाश्चात्य जीवनशैली को एक आदर्श रूप में देखने लगी हैं। उनका मानना है कि अगर वहां लोगों की मानसिकता खुली और बोल्ड है तो यह एक सकारात्मक पक्ष ही है, क्योंकि ऐसे हालातों में शोषण और दमन जैसी चीजें कोई स्थान नहीं रखतीं। जिस समाज में महिलाएं भी बराबर महत्व और अधिकार रखती हैं वहां पुरुषों द्वारा शोषण किए जाने की बात नहीं की जा सकती। एक सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में दर्ज हुए 1 करोड़ 20 लाख मामलों में हर पल 24 महिलाओं ने बलात्कार, हिंसा या अपना पीछा किए जाने की शिकायत दर्ज करवायी है। महिलाओं के वास्तविक हालातों से जुड़े यह मामले किसी को भी हैरान कर सकते हैं. एक ओर जहां यह आंकड़ें यह साफ बयां करते हैं कि अगर हम विदेशी लोगों को भोग-विलासी या भौतिकवादी कहते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, वहीं दूसरी ओर यह तथ्य हमें यह सोचने को भी मजबूर कर सकता है कि क्या महिलाओं के साथ शोषण होना हर समाज की एक मौलिक पहचान है, क्या शिक्षा और आधुनिकता इन अमानवीय हालातों में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते। भारत जैसे परंपरागत समाज में महिलाओं को हमेशा अन्याय सहन करने की शिक्षा दी जाती है. पति की सेवा और उसकी हर इच्छा को पूरा करना महिलाओं का एकमात्र धर्म माना जाता है. जो समाज आज भी महिलाओं को पुराने रीति-रिवाजों की भेंट चढ़ा देता हैं, वहां महिलाओं के साथ ऐसी वारदातें हमारे समाज की इस मौलिक पहचान को मजबूत आधार देता है। समय परिवर्तन के बावजूद आज भी महिलाएं खुद को स्वतंत्र और सुरक्षित नहीं मान सकतीं, वह कभी भी इस बात से आश्वस्त नहीं रह सकतीं कि घर और बाहर के वातावरण में वे सुरक्षित हैं। फिर भी हम यह मानकर चलते हैं कि शिक्षा और आधुनिक मानसिकता विकसित होने के बाद पुरुषों के ऐसे स्वभाव पर नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन पाश्चात्य पुरुष तो अत्याधुनिक और शिक्षित होते हैं तो उनका ऐसा करने का क्या कारण हो सकता है ? दिल्ली एनसीआर में शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा है लेकिन आये दिन महिलाओं को ही शिकार बनाया जाता रहा है।